उत्तराखण्ड राज्य का पिथौरागढ जनपद 24 फरवरी 1960 में जनपद अल्मोडा की एक तहसील पिथौरागढ को अलग कर अस्तित्व में आया। हिमालय की गोद में बसा यह जनपद नेपाल और चीन की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगा है। वर्षपर्यन्त अनेक पर्यटक जनपद में स्थित विभिन्न दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करने आते हैं। पिथौरागढ जनपद का विस्तार 29.40 से उत्तरी अक्षांश तथा 80 से 81 अक्षांश पूर्वी देशान्तर के मध्य है। जनपद की उत्तरी तथा पूर्वी सीमाऐं क्रमश: चीन तथा नेपाल से लगती है और दक्षिणी सीमा में चम्पावत व पश्चिमी सीमा में जनपद अल्मोडा स्थित है।
पिथौरागढ जनपद की प्रसिद्ध गुफाओं में पाताल भुवनेश्वर, शैलेश्वर, भोलेश्वर आदि के अतिरिक्त प्रसिद्ध तीर्थ आदि कैलाश तथा कैलाश मानसरोवर का प्राचीन पैदल मार्ग होने के साथ ही तिब्बत और नेपाल की सीमा से लगे हिम श्रृंखलाओं की गोद में बसे भोटिया तथा बनरावत आदि जनजातियों के आवास के कारण पिथौरागढ जनपद की एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है। गर्मियों में घाटियों में गर्मी तथा जाडों में क्षेत्र में अत्यधिक ठंड रहती है। समुद्र तल से लगभग 5315 फीट ऊँचाई पर स्थित पिथौरागढ जनपद की उत्तरी सीमा पर गगनचुम्बी हिमाच्छादित पर्वत मालाएं जिनमें पंचाचूली और त्रिशूल पर्वत शिखर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिये विख्यात है। पर्वताराहियों के लिये यह जनपद विशेष आकर्षण का केन्द्र है। मुन्सयारी एवं धारचूला तहसीलों में हिमाच्छादित शिखरों में छ: माह तक शीतकाल में बर्फ रहती है। सम्पूर्ण जनपद पर्वत एवं घाटियों में विभक्त है। यहां की पर्वत श्रृंखलायें दक्षिण में कहीं कम और कहीं अधिक ऊँचाई लेती हुई है। इन पर्वत मालाओं में अनेक सुन्दर घाटियां और हरे भरे मनमोहक बुग्याल है। जिसमें सोर घाटी जहां जनपद मुख्यालय स्थित है, अपने नैसर्गिक सौन्दर्य तथा भौगौलिक दृष्टि से अत्यन्त प्रसिद्ध है।
कुमाऊँ मण्डल का सीमान्त जनपद पिथौरागढ ऐतिहासिक सांस्कृतिक एवं नैसर्गिक दृष्टि से पर्यटकों, शोधार्थियों, तीर्थयात्रियों आदि के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस जनपद में प्रागैतिहासिक काल से ही मानवीय गतिविधियों के अवशेष प्राप्त होते है। नगर के समीप ही सिलौली गॉव के ऊपरी छोर से प्राप्त वृहत्पाषाण युगीन संस्कृति के अवशेष, बनकोट (गंगोलीहाट) तथा नैनीपातल (पिथौरागढ) से प्राप्त ताम्रसंचय युगीन अवशेषों की प्राप्ति से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक युगीन मानव की गतिविधियॉ अपने चरम पर थी। ऐतिहासिक युग में यहां कत्यूरी चन्द, पाल, बम, मणकोटी आदि राजाओं के पुरातात्विक अवशेष इस क्षेत्र में बिखरे पडे हैं। नगर से लगभग 8 किमी0 दूरी पर स्थित नकुलेश्वर मन्दिर की गुप्त कालीन विष्णु प्रतिमा, उत्तराखण्ड की वैष्णव प्रतिमाओं में सबसे प्राचीनतम जानी जाती है। नकुलेश्वर, कासनी, मरसोली, दिगांस आदि मन्दिरों के अलावा इस पूरे क्षेत्र में महत्वपूर्ण पुरातात्विक सामग्री विद्यमान है। लोक कलाओं के रूप में स्थानीय कला जिनमें छलिया, झोडे, चांचरी, छपेली, न्योली, हिलजात्रा, चैतोल, हुडका-बोल आदि के साथ ही जोहार व्यास, दारमा, चौंदास आदि अलग-अलग जनजातीय क्षेत्रों की विभिन्न पारम्परिक लोक कलायें अपनी अलग ही विशिष्टता लिए हुए हैं।
पिथौरागढ तथा इसके सीमावर्ती जनपदों की विभिनन पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा लोक कला आदि से सम्बन्धित बहुमूल्य धरोहरों को संग्रहीत संरक्षित, प्रदर्शित एवं उन पर शोध करने के उददेश्य से जनपद मुख्यालय में संग्रहालय की स्थापना की गयी है। वर्तमान में यह संग्रहालय हवाई पटटी के समीप बस स्टैन्ड से लगभग 04 किमी0 की दूरी पर स्थित है।
विभिन्न विधा के कलाकारों को एक मंच पर लाने के उददेश्य से संग्रहालय भवन के प्रथम तल में 410 सीटों की क्षमता का एक प्रेक्षागृह भी स्थापित किया गया है। जिसमें विभिन्न अवसरों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कराये जा रहे हैं। संग्रहालय भवन में प्रेक्षागृह के अतिरिक्त एक पुस्तकालय भी स्थापित किया गया है। जिसमें वर्तमान में इतिहास, संस्कृति, कला तथा पुरातत्व से सम्बन्धित पुस्तकों का संकलन किया गया है। इसके साथ ही एक छोटे व्याख्यान कक्ष का निर्माण भी किया गा है। जिसमें लगभग 60 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है।
इस भवन के भूतल में निर्मित संग्रहालय में फिलहाल चार वीथिकाओं का निर्माण किया गया है। प्रथम वीथिका में उत्तराखण्ड के पुरातात्विक महत्व के देवालयों तथा कलाकृतियों के छायाचित्रों को अत्यन्त सुरूचिपूर्ण तरीके से प्रदर्शित किया गया है। इस वीथिका में बनकोट, तहसील गंगोलीहाट, जिला पिथौरागढ से प्राप्त लगभग 2500 ई0 पू0 की ताम्र आकृति को प्रदर्शित किया गया है। यह कलाकृति उत्तराखण्ड के इतिहास की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। इसी वीथिका में ग्राम डाबरी नकुलेश्वर पिथौरागढ से प्राप्त लगभग 10-11वीं शताब्दी की शेषशायी विष्णु की प्रस्तर प्रतिमा, दरकोट मुनस्यारी से प्राप्त चमडे की ढाल, लोहे की तलवार, गोरखा कालीन भरूदा बन्दूक के अग्रभाग (लमछड) को भी अत्यन्त सुरूचिपूर्ण ढंग से प्रदर्शित किया गया है। प्रथम वीथिका के एक शोकेस में दुगईआगर गंगोलीहाट से प्राप्त मिटटी की मध्य कालीन पाइप लाइन को तीन भागों में प्रदर्शित किया गया है। जिसे उत्तरमध्यकाल में पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भूमिगत ले जाने के लिये पाइप लाइन के रूप में प्रयोग किया जाता था। इसी शोकेस में टनकपुर से प्राप्त जनजातीय आभूषणों को प्रदर्शित किया गया है, जिन्हें जनजातीय महिला एवं बच्चों द्वारा दैनिक आभूषणों के रूप में उपयोग किया जाता था। इसी वीथिका के मध्य में स्थानीय कलाकारों द्वारा हस्त निर्मित नारायण आश्रम के काष्ट अनुकृति को भी प्रदर्शित किया गया है।
संग्रहालय की दूसरी वीथिका में राज्य के प्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा तैलीय, जलरंग एवं एक्रेलिक रंगों में कैनवास तथा कागज पर बनाये गये विभिन्न चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। जो समाज के विविध रूपों को जानने के लिये अत्यन्त उपयोगी है।
संग्रहालय की तीसरी एवं चौथी वीथिका में कला सामग्री कम होने के कारण अभी प्रदर्शन नहीं किया गया है। जिसे आगामी वर्षों में कलाकृतियां एकत्रित कर पर्यटकें एवं शोधार्थियों के लिये प्रदर्शित करने की योजना है। संग्रहालय के आरक्षित संग्रह में जनपद मुख्यालय के समीप सिलौली ग्राम से प्राप्त मृण्भाण्डों का अत्यन्त महत्वपूर्ण संग्रह है। इन मृण्भाण्डों का पुरातात्विक महत्व इसलिये भी और अधिक बढ जाता है, क्योंकि जिस स्थल से यह सामग्री प्राप्त हुयी है उस पूरे क्षेत्र में वृहद पाषाण संस्कृति के अवशेष अभी भी विद्यमान है। अन्य आरक्षित संग्रह में स्थानीय काष्ठ के बर्तन, ठेकी, पाली, दौनी, फरसी (हुक्का), पाल्ली, छोटी नाली (माणा), हडपी, ढपवाल (छोटा घी का बर्तन), छोटी दौनी (दुआब), चौपखिया मन्दिर से प्राप्त लगभग 10-11वीं शती ईसवी की गरूड की खण्डित प्रतिमा एवं स्थानक विष्णु की खण्डित प्रस्तर प्रतिमा, तॉबे के 10 मुस्लिम सिक्के जो सम्भवत: अलाउददीन खिलजी के जीतल हो सकते हैं और ब्रितानवी काल के सिक्कों के अतिरिक्त विभिन्न देशों के सिक्कों एवं कागजी मुद्राओं का महत्वपूर्ण संग्रह है, जिन्हें शीघ्र ही वीथिका में प्रदर्शित करने की योजना है।
जनपद मुख्यालय में संग्रहालय एवं प्रेक्षागृह की स्थापना से जहां एक ओर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक एवं लोककला से संबंधित धरोहरों का संग्रह, संरक्षण प्रदर्शन एवं शोध होने के साथ ही देश विदेश के पर्यटकों का यहां आगमन होगा वहीं दूसरी ओर विभिन्न विधा के कलाकारों को एक विशाल मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करने का अवसर भी प्रदान होगा।
समय : प्रात: 10.30 से सायं 4.30 बजे तक
साप्ताहिक अवकाश : सोमवार
अन्य अवकाश : द्यतीय शनिवार के बाद का रविवार व राजपत्रित अवकाश
प्रवेश : नि:शुल्क
सुविधाएँ
- सांस्कृतिक कार्यक्रमों हेतु आधुनिक प्रेक्षागृह
- व्याख्यान कक्ष
- पुस्तकालय
- छायाचित्र
- शैक्षिक व्याख्यान
- सचल व अस्थायी प्रदर्शिनियां
दूरभाष : राजकीय संग्रहालय, पिथौरागढ : 05964-223058
भारतवर्ष का नवसृजित उत्तरांचल राज्य भारतीय जीवन दर्शन के धार्मिक विश्वासों, विशिष्ट सांस्कृतिक परम्पराओं, ऋषि मुनियों की तपोभूमि के साथ ही नैसर्गिक सौन्दर्य एवं भौगोलिक स्थिति के कारण विश्व प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में मानवीय क्रियाकलाप संस्कृति के ऊषाकाल से ही प्रारम्भ हो गये थे। प्रमाण स्वप पाषाण कालीन उपकरण, चित्रित शैलाश्रय एवं महाश्म संस्कृति के अनेक अवशेषों की उपलब्धता के आधार पर कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में तत्कालीन मानव विचरण करता था। ऐतिहासिक काल में मौर्य, शुंग, यौधेय, कुषाण एवं गुप्त राजवंशों के अतिरिक्त स्थानीय कुणिन्द, पौरव एवं कत्यूरी शासकों के काल के पुरावशेष इस क्षेत्र में यत्र-तत्र बिखरे पडे हैं।
इस क्षेत्र में बिखरी पडी उपरोक्त शासकों से संबंधित अपार सांस्कृतिक सम्पदा के संग्रह, अनुरक्षण, अभिलेखीकरण, प्रदर्शन एवं उन पर शोध करने के उददेश्य से 1979 ई0 में उत्तरांचल की प्रसिद्ध ऐतिहासिक व सांस्कृतिक नगरी अल्मोडा में संग्रहालय की स्थापना की गयी। वर्तमान में यह बस स्टैण्ड के समीप सेंन्ट्रल लॉज नामक भवन में स्थित है।
संग्रहालय में उत्तरांचल तथा उससे लगे हुए विभिन्न क्षेत्रों की तीन हजार से अधिक महत्वपूर्ण कलाकृतियों का संग्रह है, जिन्हें आरक्षित संग्रह के अतिरिक्त संग्रहालय की पांच वीथिकाओं में सुरूचिपूर्ण एवं वैज्ञानिक तरीके से प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय परिसर में कुमाऊँ की अब तक ज्ञात सबसे प्राचीन लगभग दूसरी-तीसरी शती ई0 की विशालकाय यक्ष प्रतिमा को प्रदर्शित किया गया है। उल्लेखनीय है कि उत्तरांचल में यक्ष एवं कुबेर पूजा की अनूठी परम्परा रही है। संग्रहालय का प्रवेश द्वार स्थानीय काष्ठ कला के आकर्षक चौखट से सुसज्जित किया गया है। संग्रहालय के भीतर प्रदेश करते ही कॉरीडोर में उत्तरांचल के कुमाऊँ व गढवाल मण्डल के विशिष्ट देवालयों के स्थापत्य को रंगीन छायाचित्रों के माध्यम से तिथि एवं क्रमवार दर्शाया गया है, जिनसे दर्शकों को उत्तरांचल की वास्तुकला की विभिन्न शैलियों का परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है।
संग्रहालय की पहली वीथिका में कुमाऊँ मण्डल में विभिन्न धार्मिक व मांगलिक अवसरों पर निर्मित की जाने वाली अल्पनाओं (ऐंपण) को आकर्षक ढंग से प्रदर्शित किया गया है। इनमें देवी पूजा के लिए ज्यूँति पटट, स्थानीय देवी के लिए नन्दा देवी का पटट, पूजा स्थल के रूप में पूजा की वेदी के अतिरिक्त विवाह के समय निर्मित की जाने वाली अल्पना धूलिअर्घ चौकी, नामकरण चौकी, जनेऊ चौकी के साथ ही भवन को अलंकृत करने वाली अल्पना के रूप में हिमाचल एवं ग्वाल अल्पना को प्रदर्शित किया गया है। इसी वीथिका में हस्तशिल्प के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक प्रयोग में आने वाले बांस या रिंगाल से निर्मित मोस्टा, डोका व छापरी प्रदर्शित हैं। स्थानीय वाद्ययंत्रों के रूप में ढोल, दमुआ, नंगारा, हुडका, रणसिंह, तूरी व नागफीणी का कलात्मक प्रदर्शन किया गया है। कुमाऊँ के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले चांदी के आभूषणों को एक शो-केस में सुरूचिपूर्ण तरीके से प्रदर्शित किया गया है। इसमें सुत, हार, पौंजी, झांबर, पायल, कुटला (करधनी), केशचिमटी तथा झुमके प्रमुख हैं। इस वीथिका के अन्य शो-केस में कुमाऊँ के पारम्परिक काष्ठ बर्तनों-नाली, पाली, डोबिया, हडपी आदि को प्रदर्शित किया गया है। इसमें नाली सबसे महत्पूर्ण बर्तन है इसका प्रयोग पारम्परिक माप के बरतन के रूप में किया जाता है।
संग्रहालय की दूसरी वीथिका में भगवान विष्णु व उनके विविध अवतारों की प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाओं को प्रदर्शित किया गया है। इनमें स्थानक विष्णु, शेषशायी विष्णु, वराह अवतार एवं नृसिंह अवतार के अतिरिक्त हरि-हर प्रतिमा का भी प्रदर्शन है। वीथिका की विशिष्ट कलाकृतियों में नवीं शती ई0 की कत्यूरघाटी (बागेश्वर) से प्राप्त स्थानक विष्णु प्रतिमा, लगभग 9वीं शती ई0 की मानव मुखी गरूड की प्रतिमा, 12-13 वीं शती ईसवी का पक्षी मुखी गरूड, वराहवतार के अतिरिक्त लगभग 15वीं शती ईसवी की दो प्रस्तर खण्डों में निर्मित एक पटिया पर विष्णु के दशावतरों की अत्यन्त रोचक प्रतिमाओं का प्रदर्शन है।
तृतीय वीथिका में अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ वस्तओं का प्रदर्शन है। इसमें नैनीपातल (पिथौरागढ) से प्राप्त ताम्र संचय संस्कृति से संबंधित लगभग तृतीय सहस्त्राब्दी ई0पू0 से द्वतीय सहस्राब्दी ई0पू0 की ताम्र आकृतियां, कत्यूरघाटी से प्राप्त दूसरी शती ई0पू0 से दूसरी शती ईसवी तक के अल्मोडा प्रकार के सिक्के, यौधेय, कुषाण व गुप्त राजाओं के सिक्के, लगभग सातवीं शती ईसवी के तालेश्वर ताम्रपत्रों की अनुकृतियां, कुमाऊँ के प्रसिद्ध चन्द राजाओं के ताम्रपत्रों के अतिरिक्त लघु चित्रों सहित पंचतीर्थी गीता तथा श्री लल्लू लाल कृत हस्तलिखित प्रेमसागर को प्रदर्शित किया गया है। आधुनिक सिक्कों में ब्रितानवी काल के शासकों द्वारा भारत में चलाये गये विविध सिक्कों को प्रदर्शित किया गया है। इनमें अधेला तथा पाई दुर्लभ है। इसी वीथिका में भारत सरकार द्वारा विभिन्न अवसरों पर जारी किये गये अपरिचालित सौ, पचास, बीस तथा दस रूपये के सिक्के अनायास ही दर्शकों का मन मोह लेते हैं।
चौथी वीथिका में देवी प्रतिमाओं के विविध रूपों के क्रमश: विकास की रोचक जानकारी मिलती है। इस वीथिका में प्राचीन मृणमूर्तियों में देवी के अतिरिक्त प्रस्तर मूर्तियों में रणिहाट (गढवाल) तथा कत्यूरघाटी से प्राप्त मातृकापटट, रोतरा (गढवाल) तथा दौलाघाट (अल्मोडा) से प्राप्त महिषमर्दिनी की मूर्तियां, अल्मोडा से ही प्राप्त स्थानक तथा तपस्विनी पार्वती, कत्यूरघाटी से प्राप्त मकरारूढ गंगा, किच्छा (नैनीताल) से प्राप्त उमा-महेश की भव्य प्रस्तर प्रतिमा, नवदुर्गा व सप्तमातृका युक्त लगभग चार सौ वर्ष पुराने चांदी के हार के अतिरिक्त वर्तमान में लोककला में देवी को किस रूप से चित्रित किया जाता है इसका संजीव अंकन इस वीथिका में देखा जा सकता है।
संग्रहालय की पांचवीं वीथिका भारत रत्न पं0 गोविन्द बल्लभ पन्त जी को समर्पित की गयी है। इसमें पं0 गोविन्द बल्लभ पंत जी की आवक्ष प्रतिमा, उनकी पैतृक व मातृक वंशावली, स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं के छायाचित्र, उनके परिवार तथा राष्ट्रीय नेताओं के साथ दुर्लभ छायाचित्रों के अतिरिक्त पंत जी के विभिन्न निजी पत्रों की छायाप्रतियां इस वीथिका में प्रदर्शित की गयी है।
संग्रहालय की एक अन्य इकाई के रूप में हिन्दी साहित्य के प्रख्यात महाकवि पं0 सुमित्रानन्दन पंत के उस आवास को पंत संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया है, जिसमें पं0 पंत का जन्म हुआ था। इस वीथिका में पं0 पंत जी की निजी वस्तुओं के अतिरिक्त उनसे संबंधित छायाचित्र, हस्तलिखित एवं मुद्रित रचनाएं, मानपत्र आदि प्रदर्शित है। महाकवि के निजी वस्त्र, तखत, चादर, शाल, मेज, कुर्सी, बुक स्टैण्ड, टेबिल लैम्प के अितरिक्त पंत जी तथा श्री हरिवंशराय बच्चन के अनेक हस्तलिखित पत्र इस वीथिका में प्रदर्शित हैं। इसी परिसर में शोधार्थियों के लिए एक पुस्तकालय एवं सभाकक्ष स्थापित किया गया है। इसमें पंत जी की निजी रचनाओं के अतिरिक्त विभिन्न साहित्यकारों की लगभग 2000 पुस्तकों को प्रदर्शित किया गया है। इस वीथिका को हिन्दी साहित्य के शोध केन्द्र के रूप में विकसित करने की योजना है।
संग्रहालय की दूसरी इकाई के रूप में स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नायक भारतरत्न पं0 गोविन्दबल्लभ पंत की जन्म स्थली खूंट में पंत जी के पैतृक निवास को एक स्मारक के रूप में विकसित किया गया है। भविष्य में इसे भी एक शोध केन्द्र के रूप में विकसित करने की योजना है।
राजकीय संग्रहालय अल्मोडा के आरक्षित संग्रह में कुषाण व गुप्त राजाओं की विशिष्ट स्वर्ण मुद्राएं, मुसलमान शासकों द्वारा जारी किये गये भारतीय राशियों की अनूकृति युक्त सिक्के, लगभग नवीं शती ई0 की रावणानुग्रह प्रतिमा, जिसमें रावण द्वारा शिव पार्वती सहित कैलाश पर्वत को उठाने का रोचक दृश्य है। बमनसुयाल, गुणादित्य तथा लस्कर से प्राप्त लगभग आठवीं शती ई0 की उदीच्यवेशधारी सूर्य की प्रतिमाएं लगभग चौदहवीं शती इसवी की बौद्ध देवी तारा की प्रतिमा, लगभग दसवीं शती ई0 की जैन तीर्थकर नेमिनाथ की प्रतिमा और कत्यूरघाटी से प्राप्त लगभग दसवीं शती ई0 की कामदेव की प्रतिमा संग्रहालय की महत्वपूर्ण धरोहर है। संग्रहालय में लगभग 8-10 वीं शती की गणेश की प्रतिमाओं का महत्वपूर्ण संग्रह है। इनमें रूपकुण्ड से प्राप्त 8वीं शती ई0 की अभिलिखित गणेश प्रतिमा तथा अल्मोडा नगर से प्राप्त तांत्रिक गणेश की प्रतिमा महत्वपूर्ण है। लघुचित्र तथा हस्तलिखित ग्रंथों का भी संग्रहालय में महत्वपूर्ण संग्रह है। इनमें गढवाल, कांगडा, राजस्थानी व पहाडी चित्रकला की मूल कृतियां विशेष रोचक हैं।
इस प्रकार अल्मोडा संग्रहालय के भ्रमण से जहां एक ओर उत्तरांचल की कला, संस्कृति, पुरातत्व आदि की महत्वपूर्ण जानकारी एक ही स्थान से प्राप्त हो जाती है, वहीं दूसरी ओर भारतीय इतिहास के विविध कालखण्डों से संबंधित मृणमूर्तियों, प्रस्तरमूर्तियों एवं सुवर्ण, रजत, ताम्र तथा मिश्रित धातु में चलाये गये सिक्कों की भी रोचक जानकारी मिलती हैं।
अन्य क्रियाकलापों के अन्तर्गत संग्रहालय में शैक्षिक व्याख्यान के लिए एक सभाकक्ष, शोधार्थियों के अध्यन के लिए लगभग 2000 पुस्तकों का पुस्तकालय, कलाकृतियों के रासायनिक उपचार के लिए रसायनशाला तथा विशिष्ट कलाकृतियों की अनुकृतियों को बनाने के लिए अनुकृति अनुभाग एवं छायांकन के लिए छायाचित्र अनुभाग स्थापित हैं।
समय : प्रात: 10.30 से सायं 4.30 बजे तक
साप्ताहिक अवकाश : सोमवार
अन्य अवकाश : द्यतीय शनिवार के बाद का रविवार व राजपत्रित अवकाश
प्रवेश : नि:शुल्क
सुविधाएँ
- नि:शुल्क प्रदर्शक व्याख्याता
- पुस्तकालय
- छायाचित्र
- प्लास्टर अनुकृतियाँ
- स्लाइड शो
- फिल्म शो
- शैक्षिक व्याख्यान
- सचल व अस्थायी प्रदर्शिनियां
दूरभाष : अल्मोडा संग्रहालय : 05962-230262
कौसानी वीथिका : 05962-245014