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  • चित्रित शैलाश्रय

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    लखुडियार

    ग्राम -दिंगोली (दलबैण्‍ड)

    तहसील -बारामण्‍डल

    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा नगर से 16 किमी0 पिथौरागढ मोटर मार्ग पर दलबैण्‍ड के समीप सुयाल नदी के दायें किनारे पर लखुडियार नामक चित्रित शैलाश्रय विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    इस शैलाश्रय में गेरूवें काले तथा सफेद रंगों के विभिन्‍न चित्र बने हुए है जिनमें पंक्तिबद्ध मानव आकृतियां, ज्‍यामितीय अभिप्राय: पशु सदृश्‍य आकृतियां बिन्‍दु समूह तथा वक्र रेखायें आदि सम्मिलित हैा मुख्‍य रूप से नृत्‍य मुद्रा में पंक्तिबद्ध जनसमूह व चित्रित किये गये हैं, अधिकतर आकृतियां पूर्णतया भरी हुई हैा कुछ चित्र रेखीय हैा अधिकांश खित्रों में गहरे गेरू व रंग का प्रयोग किया हैा दस-दस मानवाकृतियों का पंक्तिबद्ध जन समूह का अंकन किया गया हैा अनेक मानवाकृतियों के शीर्ष पर केश सज्‍जा के रूप में जुडा तथा लबादे के रूप में गले से पांव तक ढीले वस्‍त्र धारण किये विद्यमान हैा कलाकार ने पशुओं की आकृतियों का अंकन किया हैा किन्‍तु पशुओं के चित्रों की संख्‍या सीमित हैा कुमाऊं क्षेत्र में लखुडियार चित्रित शैलाश्रय प्रागैतिहासिक कालीन संस्‍कृति का अनुपम उदाहरण हैा

  • कपिलेश्‍वर महादेव मंदिर

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    ग्राम -सैंजग्राम

    तहसील -बारामण्‍डल

    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा नगर से लगभग 30 किमी0 की दूरी पर मौना मोटर मार्ग पर स्थित दनकन्‍या तक टैक्‍सी अथवा जीप से पहुंचा जा सकता हैा दनकन्‍या से लगभग 1.5 किमी0 पैदल सुगमतापूर्वक पहुंचा जा सकता हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    कुमयां एवं शकुनि नामक नदियों के संगम स्‍थल पर कपिलेश्‍वर महादेव मंदिर समूह विद्यमान हैा पीढा शैली युक्‍त देवालय सामान्‍यत: तलछन्‍द योजना के अन्‍तर्गत वर्गाकार गर्भगृह के सम्‍मुख अन्‍तराल एवं मण्‍डप का निर्माण किया गया हैा उर्ध्‍वछन्‍द योजना में सादी जगती पर वेदीबन्‍ध रथिकाओं से युक्‍त जंघाभाग तथा पीढाओं युक्‍त शिखर हैा कपिली की कोली के उपर शुकनास त्रिमुख, भद्रमुख नटराज शिव आदि अलंकृत चैत्‍यगवाक्ष से भूषित किया गया हैा गंगा यमुना तथा विभिन्‍न अलंकृत शाखाओं से युक्‍त प्रवेश द्वारा हैा दूसरा देवालय भूमि आमलक युक्‍त त्रिरथ रेखाशिखर युक्‍त देवालय विद्यमान मंदिर स्‍थापत्‍य कला शैली तथा अभिलेख के आधार पर ये मंदिर लगभग 9वीं शती ई0 में निर्मित हुए प्रतीत होते हैा

  • महादेव मंदिर समूह

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    सोमेश्‍वर

    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा कौसानी मोटर मार्ग के मध्‍य सोमेश्‍वर तक लगभग 40 किमी0 छोटे अथवा बडे वाहनों से यात्रा की जा सकती हैा मुख्‍य कस्‍बा के दायें पार्श्‍व में महादेव मंदिर समूह विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    मुख्‍य मंदिर तलछन्‍द योजना के अन्‍तर्गत गर्भगृह, अन्‍तराल तथा नवीन मण्‍डप हैा उर्ध्‍वछन्‍द योजना के अन्‍तर्गत खुर, कुम्‍भ कलश से युक्‍त त्रिरथ नागर शैली में निर्मित हैा मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग पीठ हैा मंदिर के शिखर में बिजौरा निर्मित हैा इसके अतिरिक्‍त मंदिर परिसर में बाणेश्‍वर मंदिर एकाण्‍डक रेखा शिखर युक्‍त तथा भैरव मंदिर त्रिरथ नागर शैली में निर्मित हैा मुख्‍य मंदिर के गर्भगृह में त्रिमुखी शिव, लकुलीश, विष्‍णु, ब्रहमा, शेषशायी विष्‍णु आदि की प्रतिमाऐं उल्‍लेखनीय हैा यह म‍ंदिर लगभग 12 वीं शती ई0 में निर्मित हैा

  • महारूद्रेश्‍वर मंदिर समूह

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    ग्राम -बल्‍सा खूंट

    तहसील -बारामण्‍डल

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा नगर से लगभग 25 किमी0 दूर वाया कोसी से ग्राम खूंट तक छोटे वाहन से पहुंचा जा सकता हैा बल्‍सा ग्राम से लगभग 2 किमी0 उतराई में पैदल सुगमतापूर्वक पहुंचा जा सकता हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    महारूद्रेश्‍वर मंदिर समूह में विद्यमान तीन मंदिर अपने मौलिक स्‍वरूप में हैा वास्‍तुशैली के आधार पर उक्‍त देवालय 8-9वीं शती ई0 में निर्मित किये गये हैा सामान्‍य जगती पर अलंकृत जंघा भाग के ऊपर फासंडा शैली का रेखशिखर निर्मित हैा मंदिर समूह के शेष प्रासादों का कालान्‍तर में जीर्णोद्धार के कारण मूलरूप परिवर्तित हो गया हैा

  • मुण्‍डेश्‍वर महादेव मन्दिर

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    ग्राम - पिथुनी

    तहसील - बारामण्‍डल

    जनपद - अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा से लगभग 15 किमी0 दूर पिथौरागढ मोटर मार्ग पर पेटशाल से लगभग 5 किमी0 दूरी पर सूपे एवं सुयाल नदियों के संगम पर मुण्‍डेश्‍वर महादेव मन्दिर विदयमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    यहां मन्दिरों का समूह है जिनमें मुख्‍य प्रासाद के अतिरिक्‍त पांच लघु देवकुलिकाऐं है जिनका नागर शैली में निर्माण किया गया हैा तलविन्‍यास में गर्भगृह तथा अन्‍तराल निर्मित हैा उर्ध्‍वछन्‍द योजना के अनुसार बेदी बन्‍द से प्रारम्‍भ होती तथा सादी जंघा के ऊपर भूमि आमलकों से सज्जित त्रिरथ रेखा शिखर बनायें गये हैा सभी मन्दिरों में शिव लिंग स्‍थापित हैा केवल एक देवकुलिका में उमा-महेश की प्रतिमा तथा दूसरी देवकुलिका में एक राजा अर्जुन देव का चार पंक्तियों का एक अभिलेख हैा वास्‍तुकला के अनुसार यह मन्दिर समूह लगभग 12-13वीं शती ई0 का प्रतीत होता हैा

  • नन्‍दा देवी मन्दिर समूह

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    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा नगर के मध्‍य में स्‍थानीय प्रसाधित प्रस्‍तरों से निर्मित नन्‍दा देवी मन्दिर समूह विदयमान हैा बस स्‍टेशन से लगभग 100 मीटर की दूरी लाला बाजार की समाप्ति पर ही नन्‍दा देवी मन्दिर स्थित हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    नन्‍दा देवी मंदिर समूह का निर्माण आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व सन् 1688 ई0 में कुमाऊं के चन्‍द राजा उदयोत चन्‍द द्वारा करवाया गया था पर्वतेश्‍वर नामक यह देवालय सन् 1760 में दीप चन्‍द्र के द्वारा बनाये जाने से इसे दीप चन्‍द्रेश्‍वर मन्दिर नामित किया गया कुमाऊं में ब्रिटिश काल कमिश्‍नर ट्रेल (1815-35 ई0) के समय नन्‍दा देवी की प्रतिमा स्‍थापित किये जाने से इसे नन्‍दा देवी मन्दिर के नाम से पुकारा जाता हैा उक्‍त दोनों देवालय रेखा शिखर युक्‍त सर्वतोभद्र शैली में बनाया गया हैा तीसरा देवालय ढालू छत युक्‍त बनाया गया हैा देवालय की वाहय भित्ति में अधो भाग, सज्‍जा पटिटयों से अलंकत जिसमें गजथर, अश्‍वथर, शिकार करते हुए सिंह, नाग मिथुन आदि विभिन्‍न अभिप्रायों से अलंकत हैा मण्‍डोवर भाग में विभिन्‍न देवी देवताओं, रामायण से सम्‍बधित दृश्‍य उकेरे गये हैा वास्‍तुकला की दृष्टि से रेखा शिखर युक्‍त यह देवालय लगभग 17वीं शती ई0 के उदाहरण हैा विभिन्‍न अलंकरणों से प्रयुक्‍त सज्‍जा पटिटयों के अभिप्राय पहले से चली आयी परम्‍पराओं के प्रतीक हैा

  • नौदेवल मन्दिर समूह

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    ग्राम -बानठौक

    तहसील - बारामण्‍डल

    जनपद - अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा पिथौरागढ मोटर मार्ग के मध्‍य लगभग 30 किमी0 बस अथवा छोटे वाहनों से तोली तक यात्रा की जा सकती हैा तोली से लगभग 7 किमी0 पैदल यात्रा कर सुगमतापूर्वक पहुंचा जा सकता हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    गांव के समीप बडतोली गधेरा तथा खोले के गाड के संगम पर स्‍थानीय प्रसाधित शिलाखण्‍डों से निर्मित (नन्‍देश्‍वर) नौ प्राचीन मन्दिरों का समूह स्थित हैा जिसे नौदेवल कहते हैा सभी मन्दिरों के सम्‍मुख स्‍तम्‍भों पर आधारित अर्द्धमण्‍डप सम्मिलित हैा उर्ध्‍वछन्‍द योजना में सामान्‍य जगती पीठ खुर कुम्‍भ, कलश गढनों तथा सादी चन्‍द्रशाला अभिप्राय: सहित पटिटयों से युक्‍त बेदी बन्‍द के उपर सादे जंघा भाग तथा नागर शैली में एकाण्‍डक अथवा त्रिरथ रेखा शिखर का निर्माण किया गया हैा इनमें पत्र शाखा, नागशाखा, कलश धारी कच्‍छप वाहिनी यमुना, मकर वाहिनी गंगा दृष्‍टव्‍य हैा किसी-किसी देवालय में गर्भगृह की वितान फुल्‍ल पदम हैा कपिली के ऊपर सादी शुकनास पर गजसिंह भी विदयमान हैा सभी देवालयों के गर्भगृह में शिव लिंग स्‍थापित हैा इस मन्दिर समूह में रखी गयी प्रतिमाओं में उमा-महेश तथा कार्तिकेय की प्रतिमा विशेष उल्‍लेखनीय हैा वास्‍तुकला के आधार पर सभी देवालय 12वीं से 14वीं शताब्‍दी के मध्‍य निर्मित किये गये हैा1

  • पाताल देवी मन्दिर

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    ग्राम -शैल

    तहसील - बारामण्‍डल

    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा बागेश्‍वर मोटर मार्ग के मध्‍य लगभग 4 किमी0 की दूरी पर शैल ग्राम में पाताल देवी मन्दिर विद्यमान हैा

    यह मुख्‍य सडक मार्ग से लगभग 100 मी0 उतराई में हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    चंद वंशीय राजा दीप चन्‍द के शासन काल (1748-77) में इस देवालय का निर्माण किया गया कालान्‍तर में यह देवालय टूट गया था तत्‍पश्‍चात गोरखा शासन काल में इसे नये सिरे से निर्माण किया गया यह मन्दिर स्‍थानीय प्रसाधित प्रस्‍तरों से निर्मित किया गया भूमि विन्‍यास के अन्‍तर्गत त्रिरथ शिखर युक्‍त गर्भ गृह तथा चारों ओर स्‍तम्‍भों पर आधारित ------------ का निर्माण किया गया है गर्भ गृह तथा प्रदक्षिणा पथ की बहुपंक्ति वितान के मध्‍य में प्रफुल्लित पदमाकृति बनायी गयी है गर्भ गृह के सम्‍मुख शुकनास सहित अन्‍तराल न बनाकर शिखर के भद्र रथ के मध्‍य में आगे निकली हुई एक शिला पर गज सिंह प्रतिमा स्‍थापित है मन्दिर के गर्भगृह में प्राकृतिक शक्ति पीठ स्‍वयं भू शक्ति पीठ है दीवार में बने जल प्रलानक से जल बाहर निकलता है मन्दिर की वास्‍तु शैली सामान्‍य हैा

  • प्राचीन समाधियां

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    ग्राम -जसकोट

    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा से लगभग 12 किमी0 हुना एक जीप अथवा टैक्‍सी से पहुंचा जा सकता हैा हुना से लगभग 2 किमी0 पैदल यात्रा कर स्‍मारक-स्‍थल तक सुगमतापूर्वक पहुंचा जा सकता हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    गांव के उत्‍तर पूर्वी सीमान्‍त पर चटटान में लघु एवं दीर्घ वृत्‍ताकार अनेक गड्डे कप मार्क्‍स के रूप में दृष्टिगोचर होते हैा इसके अतिरिक्‍त यहां पर तीन गड्डे विद्यमान है जिनका मुंह छिद्र रूप में खुले हुए है तथा एक चौकोर पत्‍थर भी विद्यमान हैा इन सभी को उत्‍खनन के माध्‍यम से ही प्रकाश में लाया जायेगा इसके अतिरिक्‍त कुछ और गडडे हो सकते है जो कि टीले की सफाई के बाद में ही प्रकाश में आयेंगे

  • श्रीराम मन्दिर

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    ग्राम -नारायण काली

    तहसील - बारामण्‍डल

    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा से 17 किमी0 दूर पिथौरागढ मोटर मार्ग पर स्थित दल बैण्‍ड से 4 किमी0 पैदल काकडी गाड एवं बमरौली गधेरे के संगम पर श्री राम मंदिर नारायण काली विदयमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    यहां पर स्थित नारायण एवं काली नामक दो मन्दिरों के संयुक्‍त नाम पर ग्राम का नाम नारायण काली हो गया नारायण मन्दिर को ही श्री राम मन्दिर के नाम से पुकारा जाता हैा उक्‍त देवालय पीढा शैली में निर्मित हैा तथा तल छनद योजना के अर्न्‍तगत वर्गाकार गर्भगृह, अन्‍तराल, गूढमण्‍डप तथा मुख मण्‍डप सम्मिलित हैा गर्भगृह में चतुर्भुज विष्‍णु प्रस्‍तर प्रतिमा मूल देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैा मण्‍डप एवं गर्भगृह में विभिन्‍न प्रतिमाऐं रखी हैा जिसे एक छोटा मूर्ति शैड का रूप दिया गया हैा वास्‍तुकला एवं प्रतिमा विज्ञान की दृष्टि से श्री राम मन्दिर एवं प्रतिमाऐं लगभग 10वीं शती ई0 की प्रतीत होती हैा

  • शिव मन्दिर

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    ग्राम -चौसाला

    तहसील - भनोली

    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा पिथौरागढ मोटर मार्ग के मध्‍य लगभग 45 किमी0 दूर धौलादेवी तक बस / जीप से यात्रा की जा सकती हैा धौलादेवी से लगभग 6 किमी0 उतराई से चौसाला ग्राम के दक्षिण पूर्व छोर में एक प्राचीन देवालय विदयमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    ग्राम के समीप ही दो गधेरों के मध्‍य स्‍थानीय प्रसाधित प्रस्‍तरों से निर्मित पीढा शैली युक्‍त शिव मन्दिर विदयमान हैा स्‍थानीय जनता इसे सिमाण के मन्दिर के नाम से पुकारती हैा पूर्वाभिमुख देवालय के रेखा शिखर युक्‍त वर्गाकार गर्भगृह के सम्‍मुख शुकनास सहित अन्‍तराल का निर्माण किया गया हैा स्‍मारक लगभग 9-10वीं शती ई0 का प्रतीत होता हैा मन्दिर के गर्भगृह में लगभग 10वीं शती ई0 की उमा महेश एवं शिवलिंग विदयमान हैा

  • त्रिनेत्रेश्‍वर एवं एकादशरूद्र महादेव मंदिर समूह

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    ग्राम -बमनसुयाल

    तहसील -बारामण्‍डल

    जनपद -अल्‍मोडा

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा से लगभग 35 किमी0 देवीधुरा मोटर मार्ग पर लमगडा से लगभग 8 किमी0 पैदल उतराई से सुगमतापूर्वक पहुंचा जा सकता हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    बमनसुयाल गांव के समीप ही सुयाल और पामिया गधेरे के संगम स्‍थल के समीप ही सोलह प्राचीन मंदिरों का समूह विदयमान हैा पांच मंदिरों के समूह को त्रिनेत्रेश्‍वर महादेव मंदिर तथा ग्‍यारह मंदिरों के समूह के अन्‍तर्गत त्रिनेत्रेश्‍वर, कार्तिकेय, उमा महेश्‍वर, बटुक भैरव हरहर महादेव मंदिर हैा यह नागरशैली एवं वल्‍लभी शैली में हैा इन मंदिरों के भूमि विन्‍यास के अन्‍तर्गत सामान्‍य गर्भगृह अन्‍तराल तथा मण्‍डप सम्मिलित हैा सादी जगती पीठ पर बन्‍ध से प्रारम्‍भ होकर जंघा तथा आमलसारिका सहित एकाण्‍डक अथवा त्रिरथरेखा शिखर का निर्माण किया गया हैा शिखर के सम्‍मुख अन्‍तराल का शीर्ष चैत्‍यगवाक्षयुक्‍त हैा यहां पर शेषशायी विष्‍णु, सूर्य लक्ष्‍मीनारायण, कार्तिकेय, उमा-महेश की प्रतिमाएं हैा इस स्‍थल में विदयमान एक जैन प्रतिमा को वर्तमान में पंडित गोविन्‍द बल्‍लभ पंत, राजकीय संग्रहालय, अल्‍मोडा में प्रदर्शित हैा इन मंदिरों का निर्माण लगभग 9 वीं शती ई0 के मध्‍य किया गया हैा

  • बाघनाथ मन्दिर समूह

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    ग्राम -एवं तहसील - बागेश्‍वर

    जनपद -बागेश्‍वर

    पहुंच मार्ग -

    अल्‍मोडा से बागेश्‍वर 85 किमी0 की दूरी पर विद्यमान तल्‍ला कत्‍यूर में गोमती सरयू के संगम पर बाघनाथ मंदिर समूह, बागेश्‍वर स्थित हैा इसे उत्‍तराखण्‍ड का प्रथम प्रयाग भी कहा जाता हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    इस मन्दिर की धार्मिक मान्‍यताऐं प्राचीन काल से हैा सम्‍भवत: सर्वप्रथम इस स्‍थल पर मन्दिर का निर्माण कत्‍यूरी राजाओं द्वार करवाया गया था क्‍योंकि यहां पर रखी गयी विभिन्‍न देवी देवताओं की लगभग 60 पाषाण प्रतिमाएं है जो अधिकतम 7वीं शती से 10वीं शती ई0 की हैा इकाई द्वारा संरक्षित बाघनाथ बाणेश्‍वर तथा भैरवनाथ मंदिर हैा बाघनाथ मंदिर का निर्माण कुमाऊं के राजा लक्ष्‍मीचन्‍द ने सन् 1602 ई0 में करवाया था बाणेश्‍वर मंदिर वास्‍तुकला की दृष्टि से 14वीं शताब्‍दी से अधिक प्राचीन नहीं हैा बाघनाथ तथा बाणेश्‍वर मंदिरों के निर्माण में स्‍थानीय प्रसाधित प्रस्‍तरों का प्रयोग किया गया हैा इसके तलछन्‍द योजना के अन्‍तर्गत गर्भगृह अन्‍तराल तथा मण्‍डप का निर्माण किया गया हैा उर्ध्‍वछन्‍द में विभिन्‍न गढनों से युक्‍त वेदीबन्‍ध, पंचरथ कपिली के ऊपर गजसिंह मण्डित शुकनास हैा बाघनाथ मंदिर के शीर्ष पर काष्‍ठ छत्र शोभायमान हैा

    इस प्रकार बाणेश्‍वर मंदिर भी विद्यमान है परन्‍तु मण्‍डप नहीं हैा भैरवनाथ मंदिर की सामान्‍य घरों की तरह ढलवा छत बनाई गयी हैा यहां पर वर्तमान में एक मूर्तिशैड बनाया गया है जिसमें कुल 56 पाषाण निर्मित प्रतिमाएं एवं प्रतिमाओं के अवशेष विद्यमान हैा

  • बद्रीनाथ मन्दिर समूह

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    ग्राम -गढसेर

    जनपद -बागेश्‍वर

    पहुंच मार्ग -

    कत्‍यूरघाटी में गरूड से 2 किमी0 उत्‍तर पूर्व गरूड गंगा के बाऐं तट पर दो देवालय विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    लगभग 14 वीं शताब्‍दी का पश्चिमाभिमुख नागर शैली के मन्दिर की तलछन्‍द योजना में वर्गाकार गर्भगृह, अन्‍तराल तथा पूर्ण मन्दिर सम्मिलित हैा अन्‍तराल के ऊपर शुकनास में गज सिंह अभिप्राय से भूषित हैा उर्ध्‍वछन्‍द में नीचे सादा उपानों से युक्‍त बेदी बन्‍द तथा त्रिरथ गर्भगृह के ऊपर तीन-तीन भूमि आमलकों से विभक्‍त रेखा शिखर हैा शीर्ष भाग के आमलक शिखा के ऊपर आकाशलिंग स्‍थापित हैा मण्‍डोवर के ऊपरी भाग में छज्‍जे के नीचे भद्रों पर तीनों ओर गर्भगृह के प्रकाश निमित्‍त गवाक्ष बनाये गये हैा मन्दिर के गर्भगृह में चतुर्भुजी स्‍थानक विष्‍णु प्रतिमा पूजा के अन्‍तर्गत हैा इस मन्दिर के पूर्वी कोने में पीढा शैली की एक लघु देवकुलिका विद्यमान हैा इसका पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार तीन शाखाओं से भूषित हैा इस देवालय की अग्र भित्ति पर देवनागरी लिपि में तीन अभिलेख विद्यमान हैा एक अभिलेख में शाके 1253 की तिथि अंकित हैा वर्तमान में इस मन्दिर के गर्भगृह में रखी प्रतिमाऐं राजकीय संग्रहालय अल्‍मोडा में सुरक्षित रखी गयी हैा

  • एक हथिया नौला

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    ग्राम - ढकना

    जनपद - चम्‍पावत

    पहुंच मार्ग -

    चम्‍पावत के उत्‍तर पश्चिम में लगभग 6 किमी0 दूर चम्‍पावत मायावती पैदल मार्ग पर ढकना के निकट घने वृक्षों के मध्‍य एक हथिया नौला स्थित हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    एक हथिया नौला स्‍थापत्‍य एवं कला शिल्‍प का अनुपम उदाहरण है तलछन्‍द योजना के अनुसार किसी देवालय के सदृश्‍य गहराई में वर्गाकार सोपान युक्‍त लघु जलाशय तथा प्राग्रीव के समान इसके सम्‍मुख दो स्‍तम्‍भों पर आधारित समतल वितान सहित बरामदा बनाया गया हैा उर्ध्‍व गुम्‍बदाकार पंक्ति वितान बनाकर मध्‍य में प्रफुल्लित पद्मयुक्‍त प्रस्‍तर रखा गया हैा इस जलाशय की आन्‍तरिक भित्तियां तथा वितान प्रचुरता से अलंकृत हैा

  • पंचायतन शिव मन्दिर

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    ग्राम - चैकुनी

    तहसील / जनपद - चम्‍पावत

    पहुंच मार्ग -

    चम्‍पावत से 6 किमी0 टनकपुर मोटर मार्ग पर फुलारा गांव के दक्षिणी पार्श्‍व में लगभग 2 किमी0 की दूरी पर ग्राम के मध्‍य में पंचायतन शिव मन्दिर विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    नागर शैली की सभी विशेषताओं से युक्‍त पद विन्‍यास के अन्‍तर्गत गर्भगृह अन्‍तराल या सम्‍मुख का निर्माण किया गया हैा उर्ध्‍वछन्‍द में सादी जगती पीठ पर विभिन्‍न सज्‍जा से पट्टियों से युक्‍त वेदीबन्‍द तथा जंघा कपोताली के ऊपर भूमि आमलक युक्‍त त्रिरथ रेखा शिखर बनाया गया हैा शिखर के तीन ओर भद्ररथ पर देवताओं की युगल आकृतियां सहित रथिकाऐं बनी हैा अन्‍तराल के ऊपर शुकनाश चैत्‍यगवाक्ष से अलंकृत हैा पूर्वाभिमुख प्रवेशद्वार पंचशाखा युक्‍त हैा ललाट विम्‍ब पर गणेश का अंकन हैा गर्भगृह में शिवलिंग के अतिरिक्‍त शिव तथा विष्‍णु की प्रतिमाऐं रखी हैा देवालय की अन्‍तराल की दीवार में देवनागरी लिपि में शाके 1398 तिथि सहित अभिलेख राजा अभय चन्‍द का हैा अत: उक्‍त मन्दिर राजा अभय चन्‍द ने 1376 ई0 में निर्माण किया होगा

  • प्राचीन समाधियों

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    ग्राम - फूंगर

    तहसील / जनपद - चम्‍पावत

    पहुंच मार्ग -

    चम्‍पावत से 6 किमी0 दूर तामिली मोटर मार्ग पर के फूंगर से लगभग आधा किमी0 की दूरी पर प्राचीन समाधियां जोग्‍यानी गौर विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    गांव के पूर्व दक्षिणोत्‍तर भाग में जोग्‍यानी गैर कहे जाने वाले एक आयताकार ढलवी भूमि में प्राचीन समाधियां विद्यमान हैा ये समाधियां छोटे-बडे हैा बडी समाधियां 2-3 मीटर के व्‍यास की वृत्‍ताकार हैा जिनके ऊपर गढे हुए प्रस्‍तर क्रम में रखे हुए हैा सभी अवशेषों का सन्‍दर्भ महाश्‍म संस्‍कृति से विदित होता हैा

  • प्राचीन विश्रामालय

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    ग्राम -गडकोट(तोली)

    पहुंच मार्ग -

    खेतीखान से 12 किमी0 की दूरी पर खेतीखान चम्‍पावत मोटर मार्ग पर विद्यमान नरियाल गांव से लगभग 3 किमी0 दूर गडकोट नामक ग्राम में स्थित हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    प्राचीन काल में पैदल यात्रा पथ में प्राकृतिक जलश्रोत के समीप पक्‍के चबूतरे के निर्माण की परम्‍परा थी कुमाऊं क्षेत्र में इन्‍हें रैका चबूतरा भी कहा जाता हैा स्‍थानीय प्रसाधित प्रस्‍तरों से निर्मित चबूतरा 12 स्‍तम्‍भों पर आधारित पंक्ति वितान युक्‍त विश्रामालय बनाया गया हैा गुम्‍बदाकार वितान के मध्‍य में प्रफुल्लित पद्माकृति युक्‍त प्रस्‍तर रखा गया था जो गिरकर टूट गया हैा स्‍तम्‍भ पर चतुरस कुम्‍भ तथा मध्‍यवर्ती अष्‍ठास यष्ठि के ऊपर घटपल्‍लव शीर्ष बनवाया गया हैा सम्‍भवत: इसका निर्माण 12 वीं शती ई0 में किया गया प्रतीत होता हैा

  • शिव मन्दिर

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    ग्राम - तल्‍ली मादली

    तहसील / जनपद - चम्‍पावत

    पहुंच मार्ग -

    चम्‍पावत से एक किमी0 लोहाघाट मोटर मार्ग पर तल्‍ली मादली नामक ग्राम के मध्‍य में यह देवालय विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    ग्राम के मध्‍य में सोपान युक्‍त ऊंची साधारण जगती पर मध्‍यकालीन लघु देवालय के तलछन्‍द योजना की दृष्टि से इसमें आयताकार गर्भगृह तथा अन्‍तराल निर्मित हैा उर्ध्‍वविन्‍यास के अन्‍तर्गत चार सादी पटिट्यों से युक्‍त वेदीबन्‍द, जयामितीय अभिप्राय एवं साधारण उपानों से सज्जित जंघा भाग तथा कपोताली के ऊपर त्रिरथ रेखा शिखर का निर्माण किया गया हैा गर्भगृह तथा पूर्वाभिमुख प्रवेश द्वार त्रिशाखा युक्‍त तथा चन्‍द शाला सहित उदुम्‍बर विद्यमान है, जिसमें तीन सोपान बने हुए हैा वास्‍तुकला की दृष्टि से यह मन्दिर 13-14वीं शती ई0 का प्रतीत होता हैा

  • शिव मन्दिर

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    ग्राम - खर्ककार्की (सिट्यूडा)

    तहसील / जनपद - चम्‍पावत

    पहुंच मार्ग -

    चम्‍पावत से दो किमी0 टनकपुर मोटर मार्ग पर एम0ई0एस0 से दायीं ओर लगभ्‍ग ½ किमी0 की दूरी पर पछार गधेरे के बाऐं किनारे पर प्राचीन शिव मन्दिर विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    मन्दिर के तलछन्‍द योजना में वर्गाकार गर्भगृह अन्‍तराल तथा चार स्‍तम्‍भों पर आधारित मण्‍डप का निर्माण किया गया हैा उर्ध्‍वछन्‍द योजना के अ‍न्‍तर्गत विभिन्‍न गढनों से युक्‍त वेदीबन्‍द अलंकृत, जंघा तथा कपोताली के ऊपर त्रिरथ रेखा शिखर का निर्माण किया गया हैा शिखर के भद्ररथ पर तीनों ओर शिव पार्वती की युगल प्रतिमाओं सहित रथिकाऐं बनायी गयी हैा पंचशाखयुक्‍त पूर्वाभिमुख प्रवेश द्वार को खत्‍व ज्‍यामितीय, स्‍तम्‍भ भूमि आमलक तथा पत्र शाखाओं से विभूषित हैा गर्भगृह में चतुर्भुजी विष्‍णु की खण्डित प्रस्‍तर रखी हुई हैा वास्‍तुशैली के आधार पर इसका निर्माण 13-14 वीं शती ई0 में किया गया प्रतीत होता हैा

  • शिव मन्दिर

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    ग्राम - नादबोरा

    तहसील / जनपद - चम्‍पावत

    पहुंच मार्ग -

    चम्‍पावत से 4 किमी0 दूर मायावती पैदल मार्ग पर ढकना ग्राम के समीप कालछिन गधेरे के दाऐं तट पर प्राचीन शिव मन्दिर विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    शिखर विहीन मन्दिर के तल विन्‍यास में गर्भगृह अन्‍तराल तथा दो स्‍तम्‍भों पर आधारित अर्द्धमण्‍डप का निर्माण किया गया हैा जो वर्तमान में मूल स्‍वरूप में हैा उर्ध्‍वछन्‍द के अन्‍तर्गत सादी गढनों से युक्‍त वेदीबन्‍द, सज्‍जा उपानों से अलंकृत मण्‍डोवर तथा पंच शाखा युक्‍त प्रवेश द्वार शेष हैा गर्भगृह में नृत्‍यरत शिव, पार्वती, गणेश, लक्ष्‍मीनारायण, हनुमान आदि के प्रस्‍तर प्रतिमाऐं रखी गयी हैा यह प्रतिमाऐं 12वीं से 15वीं शती ई0 के मध्‍य की हैा वास्‍तुकला की दृष्टि से मन्दिर महत्‍वपूर्ण हैा

  • वाणासुर का किला

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    ग्राम -कर्णकरायत (मोत्‍यूराज)

    पहुंच मार्ग -

    चम्‍पावत से लगभग 19 किमी0 तहसील मुख्‍यालय लोहाघाट से लोहाघाट देवीधुरा मोटर मार्ग पर लगभग 6 किमी0 की दूरी कर्णकरायत तक बस अथवा छोटे वाहनों से पहुंचा जा सकता हैा कर्णकरायत से लगभग दो किमी0 की दूरी पर वाणासुर का किला विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    कत्‍यूर तथा चन्‍द राजवंश के पूर्व काली कुमाऊं की प्राचीनतम राजधानी लोहावती घाटी में स्थित सुई नामक स्‍थल को शोणितपुर कहां जाता था शोणितुर के दूसरी पहाडी पर बाणासुर का किला विद्यमान हैा स्‍थानीय प्रसाधित प्रस्‍तर खण्‍डों से निर्मित किले की तलछन्‍द योजना आयताकार हैा इसकी लम्‍बाई 90 मीटर तथा चौडाई 30 मीटर एवं दीवारों की मोटाई 1.15 मीटर हैा दुर्ग में पश्चिम, दक्षिण एवं उत्‍तर पूर्वी कालों में दो प्रवेश द्वार बनाये गये हैा किले की दीवारों में सुरक्षा हेतु 85 छिद्र बने हैा जिसमें से शत्रु पर तीन कमानों से प्रहार किया जाता होगा प्रवेश द्वार में किवाड लगाये जालने का प्राविधान था किले के चारों कोनों पर बुर्ज बने हैा जिन पर पहुंचने के लिए ढलवा पथ निर्मित किये गये हैा दुर्ग के भीतर पांच आवासगृह तथा पानी हेतु पक्‍का कुण्‍ड बनाया गया हैा यह किला उत्‍तर मध्‍यकालीन हैा

  • एक हथिया देवाल

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    ग्राम -अल्मिया गांव - थल, डीडीहाट

    जनपद -पिथौरागढ

    पहुंच मार्ग -

    थल से लगभग 2 किमी0 की दूरी पर अल्मिया गांव की सीमा में भेलिया जलप्रपात के निकट एक हथिया देवाल विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    एक हथिया देवालय एक ही चट्टान को काटकर (एकाश्‍म) बनाया गया हैा मन्दिर नागर शैली त्रिरथ प्रकार का हैा तलछन्‍द योजना के अन्‍तर्गत गर्भगृह गजसिंह युक्‍त अन्‍तराल तथा चार स्‍तम्‍भों पर आधारित पीढा शिखर युक्‍त मण्‍डल बनाया गया हैा गर्भगृह में शिवलिंग स्‍थापित हैा शैली के अनुसार इस मन्दिर को लगभग 12वीं शती ई0 में निर्मित किया गया प्रतीत होता हैा

  • चामुण्‍डा एवं शिव मन्दिर

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    ग्राम -पाताल भुवनेश्‍वर

    तहसील -बेरीनाग

    जनपद -पिथौरागढ

    पहुंच मार्ग -

    पिथौरागढ उपतहसील बेरीनाग के अन्‍तर्गत पाताल भुवनेश्‍वर नामक ग्राम के लिए गंगोलीहाट – बेरीनाग मोटर मार्ग पर विद्यमान गुप्‍तडी नामक स्‍थल से लगभग 10 किमी0 दूर पैदल एवं जीप से पहुंचा जा सकता हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    भुवनेश्‍वर ग्राम के मध्‍य में दो प्राचीन देवालय विद्यमान हैा इनमें प्रथम वल्‍ल्‍भी शैली में चामुण्‍डा मन्दिर तथा दूसरा नागर शैली में शिव मन्दिर निर्मित हैा चामुण्‍डा मन्दिर के गर्भगृह में चामुण्‍डा प्रतिमा स्‍थ‍ापित हैा नागर शैली का मन्दिर त्रिरथ प्रकार का हैा देवालय के सम्‍मुख अन्‍तराल तथा छ: स्‍तम्‍भों पर आधारित गूढ मण्‍डप का निर्माण किया गया हैा प्रागंण में पडे स्‍तम्‍भ तथा उत्‍तरॉग पर देवनागरी लिपि में अभिलेख उत्‍तकीर्ण हैा लघु मूर्ति शैड में 27 छोटी-बडी प्रतिमाऐं रखी गयी हैा शैली के अनुसार यह देवालय लगभग 10 वीं शती ई0 में निर्मित माना जा सकता हैा

  • महारूद्रलक्ष्‍मीनारायण

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    ग्राम - मरसोली, तहसील – पिथौरागढ

    जनपद -पिथौरागढ

    पहुंच मार्ग -

    पिथौरागढ बडाबे मोटर मार्ग के मध्‍य लगभग 10 किमी0 की दूरी पर मरसोली ग्राम तक छोटे वाहनों से यात्रा की जा सकती हैा मरसोली ग्राम के दक्षिणी छोर में विद्यमान लक्ष्‍मीनारायण मन्दिर समूह तक लगभग 300 मीटर की दूरी में पैदल सुगमता पूर्वक पहुंचा जा सकता हैा

    मरसोली ग्राम के दक्षिण पार्श्‍व में तीन देवालय विद्यमान हैा सभी देवालय एकाण्‍डक रेखा शिखर युक्‍त हैा तलछन्‍द योजना के अन्‍तर्गत केवल गर्भगृह एवं सम्‍मुख अन्‍तराल का विधान रखा गया हैा उर्ध्‍वछन्‍द योजना अन्‍तर्गत सादे वेदीबन्‍द विशाल आमलक हैा उत्‍तरॉग के मध्‍य गणेश की प्रतिमा अंकित की गयी हैा मन्दिर के गर्भगृह में क्रमश- चतुर्भुज विष्‍णु तथा लक्ष्‍मीनारायण की प्रतिमाऐं विशेष उल्‍लेखनीय हैा

  • प्राचीन शिव मंदिर समूह

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    जनपद -पिथौरागढ

    पहुंच मार्ग -

    पिथौरागढ से 55 किमी0 दूर बागेश्‍वर डीडीहाट मोटर मार्ग पर थल नामक कस्‍बे में रामगंगा नदी के बाऐं तट पर प्राचीन शिव मंदिर समूह विद्यमान हैा

    पुरातात्विक महत्‍व -

    प्राचीन शिव मंदिर समूह में लगभग 9वीं शती ई0 में निर्मित त्रिरथ नागर शैली में बना देवालय वास्‍तुकला की दष्टि से महत्‍वपूर्ण स्‍मारक हैा मंदिर का वाह्य भाग लघु चैत्‍यगवाक्ष अभिप्राय से अलंकृत हैा अन्‍य शेष तीन देवालय मध्‍यकालीन हैा एक देवालय के प्रवेश द्वार में दोनों ओर मकर वाहिनी गंगा का निरूपण किया गया हैा मुख्‍य शिव मंदिर में चतुभर्जी विष्‍णु, गणेश आदि प्रतिमाएं विद्यमान हैा

  • लक्ष्‍मी नारायण मन्दि समूह, वैरांगना

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    ग्राम -वैरांगना

    तहसील -रूद्रप्रयाग

    जनपद -रूद्रप्रयाग

    पहुंच मार्ग -

    श्रीनगर – रूद्रप्रयाग मोटर मार्ग पर श्रीनगर से 21 कि0मी0 की दूरी पर खांकरा नामक स्‍थान स्थित है, खांकरा से खिर्सू मोटर मार्ग पर 8 कि0मी0 की दूरी पर कांडई नामक स्‍थान पडता है, काण्‍डई से लगभग 1.5 कि0मी0 की दूरी पर बैरांगणा ग्राम अवस्थित है, गांव में पाठशाला के समीप लक्ष्‍मी - नारायण मन्दिर समूह स्थित है, इस समूह में कुल 9 मन्दिर हैं।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    वैरांगणा में स्थित मन्दिरों में लक्ष्‍मी-नारायण तथा शिवालय प्रमुख हैं, लक्ष्‍मी–नारायण मन्दिर की तलछन्‍द योजना में वर्गाकार गर्भगृह अन्‍तराल तथा मण्‍डप का प्राविधान है, जबकि शिवालय में मात्र गृहगर्भ तथा अन्‍तराल निर्मित हैं, ऊर्ध्‍वछन्‍द में इन मन्दिरों में वेदीबन्‍ध, जंघा भाग तथा नागर शैली के त्रिरथ रेखा शिखर विदयमान हैं, शीर्ष पर आमलसारिका स्‍थापित है, त्रिरथ रेखा शिखर कर्ण भाग पर भूमि आमलकों से सज्जित है, लख्‍मी-नारायण मन्दिर में लक्ष्‍मी नारायण की प्रतिमा स्‍थापित है। वैरंगणा के अन्‍य मन्दिर अपेक्षाकृत लघु आकार के हैं, इन मन्दिरों की तलछन्‍द योजना में गर्भगृह एवं अन्‍तराल और गर्भगृह एवं अर्धमण्‍डप की व्‍यवस्‍था है, इन मन्दिरों की उर्ध्‍वछन्‍द योजना में वेदीबन्‍ध, जंघा भाग तथा नागर शैली के त्रिरथ रेखा शिखर का प्राविधान है, शैली के अनुसार वैरांगणा स्थित मन्दिर 12-13 वीं शताब्‍दी में निर्मित प्रतीत होते हैं।

  • नाला चटटी मन्दिर समूह, एवं स्‍तूप

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    ग्राम -नाला

    तहसील -ऊखीमठ

    जनपद -रूद्रप्रयाग

    पहुंच मार्ग -

    रूद्रप्रयाग – केदारनाथ मोटरमार्ग पर ऊखीमठ तहसील के अन्‍तर्गत गुप्‍तकाशी से लगभग 1 कि0मी0 दूर स्थित सडक के किनारे स्थित है, गांव के मध्‍य में मन्दिर एवं स्‍तूप अवस्थित है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    नाला गांव में मुख्‍य मन्दिर लालिता माई का है, इस मन्दिर की तलछन्‍द योजना में गर्भगृह, अन्‍तराल और सभामण्‍डप बनाये गये हैं, मन्दिर का वेदीबन्‍ध, खुर, कुम्‍भ और कलश से सज्जित है, इसके ऊपर त्रिरथ जंघा भाग निर्मित है, जंघा भाग के अग्रभाग में एक रथिका बनाई गयी है, मन्दिर का त्रिरथ रेखा शिखर नागर शैली के अनुरूप निर्मित है, शिखर शीर्ष पर कलश, बिजौरा आमलसारिका तथा काष्‍ठ छत्रावली सुशोभित है। मुख्‍य मन्दिर के पार्श्‍व में नागर शैली के अनुरूप दो मन्दिर तथा शिवालय के साथ एक नया मन्दिर है, मुख्‍य मन्दिर परिसर में राजा नल की समाधि के रूप में प्रसिद्ध एक बौद्ध स्‍तूप अवस्थित है, प्रासाद निर्मित स्‍तूप की ऊंचाई 85 से0मी0 है, इसमें चार भिटिटयों से निर्मित पीठ पर वृत्‍ताकार में घिरा और उसके ऊपर अण्‍ड प्रदर्शित है, नाला चटटी के मन्दिर एवं स्‍तूप 11-12 वीं श्‍ताब्‍दी में निर्मित प्रतीत होते है।

  • नारायणकोटि मन्दिर समूह

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    ग्राम -नारायणकोटि

    तहसील -ऊखीमठ

    जनपद -रूद्रप्रयाग

    पहुंच मार्ग -

    रूद्रप्रयाग-केदारनाथ मोटरमार्ग पर गुप्‍तकाशी से 3 कि0मी0 की दूरी पर नारायणकोटि गांव स्थित है, गांव के मध्‍य में लगभग ढाई दर्जन मन्दिरों का समूह अवस्थित है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    नारायणकोटि में लक्ष्‍मी-नारायण मन्दिर पंचायतन शैली का है, इसमें मुख्‍य मन्दिर के चारों कोनों पर चार अपेक्षाकृत छोटे मन्दिर अवस्थित है, ये सभी मन्दिर त्रिरथ रेखा शिखर युक्‍त हैं, मुख्‍य मन्दिर में लक्ष्‍मी-नारायण की प्रतिमा स्‍थापित है, यहां पर पानी के स्रोत के पास नवगृह मन्दिर समूह है, इस श्रेणी के सभी मन्दिर तलविन्‍यास रेखा युक्‍त है, इनमें गर्भगृह और अर्धमण्‍डप का प्राविधान है, मन्दिर समूह में एक मन्दिर का शिखर गजपृष्‍ठाकृति का है, इस मन्दिर का गर्भगृह आयताकार है, उपरोक्‍त मन्दिरों के निकट एक अन्‍य स्‍थल पर दो विशाल मन्दिर निर्मित है, इन मन्दिरों की तलछन्‍द योजना में वर्गाकार गर्भगृह एवं अन्‍तराल का प्राविधान है, ऊर्ध्‍वछन्‍द योजना में शिखर क्षैतिज पटिटयों से निर्मित पीढादेउल शैली के अनुरूप निर्मित है, नारायणकोटि में स्थित उपरोक्‍त मन्दिरों के अतिरिक्‍त लगभग 500 मी0 की दूरी पर एक प्राचीन बावडी है, जिसे मन्दिरों के सदृश ही निर्मित किया गया है, शैली के अनुसार नारायणकोटि के मन्दिरों का निर्माण काल 10वीं शताब्‍दी से लेकर 13 वीं शताब्‍दी के मध्‍य माना जा सकता है।

  • नन्‍दा देवी मन्दिर समूह, बजिंगा

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    ग्राम -बजिंगा

    तहसील -घनसाली

    जनपद -टिहरी गढवाल

    पहुंच मार्ग -

    तहसील मुख्‍यालय से 25 कि0मी0 की दूरी पर धोपडधार नाम स्‍थल है, धोपडधार से लगभग 1.5 कि0मी0 दूरी पर बजिंगा गांव अ‍वस्थित है, गांव के मध्‍य में नन्‍दादेवी मन्दिर समूह के रूप में प्राचीन मन्दिर अवस्थित है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    नन्‍दादेवी मन्दिर समूह के अन्‍तर्गत शिव मन्दिर पंचायतन शैली के अनुरूप निर्मित है, इसमें मुख्‍य मन्दिर के चारों कोनों पर चार कर्ण प्रासाद निर्मित हैं, मुख्‍य मन्दिर की तलछन्‍द योजना में गर्भगृह तथा अन्‍तराल का प्राविधान है, ऊर्ध्‍वछन्‍द योजना में वेदीबन्‍ध, सादा जंघा भाग निर्मित है, जिसके ऊपर नागर शैली का त्रिरथ रेखा शिखर विदयमान है, अन्‍तराल की शुकनासिका पर लकुटधारी लकुलीश की प्रतिमा उत्‍कीर्णित है, मन्दिर की तलछन्‍द योजना में मात्र गर्भगृह का प्राविधान है, इस मन्दिर का शिखर गजपृष्‍ठाकृति के अनुरूप निर्मित बलभी शैली का है, बजिंगा के मन्दिरों में पार्वती तथा शेषशायी विष्‍णु की प्रतिमायें स्‍थापित हैं, शैली के अनुसार नन्‍दादेवी मन्दिर समूह के मन्दिर 9वीं – 10वीं शताब्‍दी में निर्मित प्रतीत होते हैं।

  • राजराजेश्‍वरी मन्दिर समह, रानीहाट

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    ग्राम -रानीहाट

    तहसील -कीर्तिनगर

    जनपद - टिहरी गढवाल

    पहुंच मार्ग -

    रानीहाट गांव अलकनन्‍दा नदी के दायें तट पर बसा हैं, कीर्तिनगर-बडियारगढ मोटर मार्ग से 3 कि0मी0 की दूरी पर स्थित राजराजेश्‍वरी मन्दिर समूह गांव के मध्‍य में स्थित है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    रानीहाट में मुख्‍य मन्दिर राजराजेश्‍वरी का है, इस मन्दिर की तलछन्‍द योजना में वर्गाकार गर्भगृह अन्‍तराल तथा मण्‍डप का प्राविधान है, मण्‍डप में यज्ञ मण्‍डप भी निर्मित है, लगभग 9 मीटर ऊचें इस मन्दिर की ऊर्ध्‍वछन्‍द योजना में एक ऊंची जगती पर खुर, कुम्‍भ, कलश तथा कपोत आदि गढनों से अलंकृत वेदीबन्‍ध के ऊपर रथिका युक्‍त जंघा भाग है, जंघा भाग के ऊपर नागर शैली के अनुरूप निर्मित त्रिरथ रेखा शिखर विदयमान है, शिखर कर्ण भाग पर भूमि आमलकों द्वारा सज्जित है, शिखर शीर्ष पर आमलक स्‍थापित है, जिसके ऊपर काष्‍ठ छत्रावली सुशोभित है, मण्‍डप चतुर्द्वार युक्‍त है, इसकी छत स्‍लेटी प्रस्‍तरों से आछादित है, गर्भगृह तथा मण्‍डप में महिषमर्दिनी दुर्गा, सूर्य, विष्‍णु तथा मातृकापटट स्‍थापित है, रानीहाट के अन्‍य मन्दिर अपेक्षाकृत छोटे हैं, इन मन्दिरों की तलछन्‍द योजना में गर्भगृह तथा अर्धमण्‍डप का प्राविधान किया गया है, इन मन्दिरों के शिखर भी नागर शैली के अनुरूप त्रिरथ विन्‍यास युक्‍त हैं, शैली के अनुसार राजराजेश्‍वरी मन्दिर समूह के मन्दिर 10वीं–11वीं शताब्‍दी में निर्मित प्रतीत होते हैं।

  • सूर्य मन्दिर समूह, पलेठी

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    ग्राम -पलेठी

    तहसील -देवप्रयाग

    जनपद -टिहरी गढवाल

    पहुंच मार्ग -

    देवप्रयाग-टिहरी मोटर मार्ग पर देवप्रयाग से 18 कि0मी0 की दूरी पर हिन्‍डोलाखाल नामक स्‍थान है, यहां से 5 कि0मी0 पैदल दूरी पर पलेठी गांव है, गांव के पूर्वी छोर पर सूर्य मन्दिर समूह अवस्थित है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    पलेठी में पांच मन्दिरों का समूह है, जिनमें सूर्य मन्दिर और शिव मन्दिर अपनी मूल अवस्‍था में है, सूर्य मन्दिर की तलछन्‍द योजना में वर्गाकार गर्भगृह एवं अन्‍तराल है, गर्भगृह में एक ऊंची मंचिका पर दिभुजी उदीच्‍यवेशीय सूर्य की प्रतिमा स्‍थापित है, अन्‍य प्रतिमाओं में बैकुण्‍ठ विष्‍णु तथा शेषशायी विष्‍णु की प्रतिमायें है, मन्दिर के प्रवेश द्वार पर गंगा यमुना की मूर्तियां उत्‍कीर्णित हैं, मन्दिर की ऊर्ध्‍वछन्‍द योजना में सामान्‍य पीठ पर निर्मित वेदीबन्‍ध के ऊपर क्षैतिज पटिटयों से निर्मित पीढादेउल शैली का शिखर है, शिखर शीर्ष पर आमलक सुशोभित है अन्‍तराल के शीर्ष पर सप्‍ताश्‍वरूढ सूर्य की प्रतिमा स्‍थापित की गयी है, शिव मन्दिर की तलछन्‍द और ऊर्ध्‍वछन्‍द योजना सूर्य मन्दिर के ही समान है, अन्‍य मन्दिरों में जंघा तक का ही भाग अपने मूलरूप में है, पलेठी के मन्दिरों एवं मूर्तियों तथा अलंकरण के आधार एवं परम भटटारक विरूद्ध वाले अदित्‍यवर्मा, कलयाण वर्मा, आदित्‍य बर्द्धन और करकबर्द्धन के नामों युक्‍त शिलालेख के अनुसार पलेठी के मन्दिर 7वीं शताब्‍दी के माने जाते हैं।

  • जगदग्नि मन्दिर थान

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    लखुडियार

    ग्राम -थान

    तहसील -बडकोट

    जनपद -उत्‍तरकाशी

    पहुंच मार्ग -

    बडकोट – यमुनोत्री मोटरमार्ग पर स्थित गंगनानी नामक स्‍थल से लगभग 3 कि0मी0 की दूरी पर थान गांव स्थित है, थान गांव के मध्‍य में जमदग्नि ऋषि का मन्दिर निर्मित है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    जमदग्नि मन्दिर भी महासू मन्दिर के समदृष्‍य काष्‍ठ और पाषाण खण्‍डों से निर्मित है, इस मन्दिर में भी एक आयताकार कक्ष के अन्‍दर गर्भगृह निर्मित है, जिसके शिखर पर काष्‍ठ छत्रावलियां सुशोभित हैं, इन काष्‍ठ छत्रावलियों के बाहरी ओर स्‍लेटी प्रस्‍तर मिश्रित किये गये हैं, मन्दिर के गर्भगृह में स्‍थापित पाषाण की प्राचीन प्रतिमाओं में उमा – महेश, लक्ष्‍मी - नारायण तथा सूर्य की प्रतिमायें मुख्‍य हैं, इनमें उमा – महेश की अत्‍यन्‍त सुन्‍दर प्रतिमा है, जो तत्‍कालीन कला का उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है, प्रतिमा में कलात्‍मक निरूपण दर्शनीय है। मुख्‍य मन्दिर के भाग में प्राचीन मन्दिरों के अवशेषों से निर्मित एक शिवालय है, इस मन्दिर की दीवारों पर ब्रहमा, शिव, विष्‍णु, गणेश अन्‍धकासुर वध की प्रतिमा, इन्‍द्र, अग्नि, चामुण्‍डा आदि की पाषाण प्रतिमायें जडित है। उपरोक्‍त मन्दिर के पार्श्‍व में पीढादेउल शैली का एक मन्दिर अवस्थित है, शैली के अनुसार जमदग्नि मन्दिर लगभग 300 वर्ष प्राचीन है, पाषाण निर्मित मन्दिर तथा मूर्तियां 10 वीं शताब्‍दी से लेकर 14 वीं शताब्‍दी की प्रतीत होती है।

  • क्‍यार्क – रैथल मन्दिर

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    ग्राम -क्‍यार्क – रैथल

    तहसील -भटवाडी

    जनपद -उत्‍तरकाशी

    पहुंच मार्ग -

    उत्‍तरकाशी जनपद के विकास खण्‍ड भटवाडी में क्‍यार्क गांव और रैथल गांव के मध्‍य खेतों के बीच में कतिपय प्राचीन मन्दिर स्थित है, पाषाण निर्मित इन देवालयों तक पहुंचने के लिए वर्तमान में भटवाडी – रैथल मोटर मार्ग से लगभग 4 कि0मी0 की दूरी तय करनी पडती है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    क्‍यार्क – रैथल मन्दिर समूह का मुख्‍य मन्दिर ध्‍वस्‍त हो चुका है, लेकिन इसके अवशेष यहां पर विदयमान हैं, इन अवशेषों में पाषाणपटट, भूमि आमलक तथा आमलसारिका मुख्‍य हैं, मुख्‍य मन्दिर के ध्‍वस्‍त होने पर कालान्‍तर में यहां पर काष्‍ठ और पाषाण से मिश्रित नया मन्दिर बनाया गया है, जो कुछ समय बाद आग लगने से ध्‍वस्‍त हो गया, इस मन्दिर की तलछन्‍द योजना में गर्भगृह तथा मण्‍डप का प्राविधान रखा गया है, मुख्‍य मन्दिर के अतिरिक्‍त यहां पर वर्तमान में दो मन्दिर ही अपनी मूल अवस्‍था में हैं, इनमें से एक मन्दिर का शिखर पीढादेउल शैली का तथा दूसरा एकाण्‍डक शिखर युक्‍त है, पीढादेउल शैली के मन्दिर की शुकनाशिका पर दियभुजी लकुलीश स्‍थापित है, इस मन्दिर के गर्भगृह में सूर्य, विष्‍णु, गणेश तथा कुबेर की खण्डित प्रतिमायें रखी हुई हैं, शैली के अनुसार क्‍यार्क-रैथल के मन्दिर लगभग 9 वीं शताब्‍दी ई0 से लेकर 11 वीं शताब्‍दी ई0 के मध्‍य में निर्मित हुए होंगे।

  • महासू मन्दिर – गैर

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    ग्राम -गैर

    तहसील -बडकोट

    जनपद -उत्‍तरकाशी

    पहुंच मार्ग -

    नौगांव – राजगढी मोटर मार्ग पर लगभग 18 कि0मी0 की दूरी पर गैर ग्राम स्थित है, वर्तमान में उपरोक्‍त मोटरमार्ग से लगभग 4 कि0मी0 गैर ग्राम तक मोटरमार्ग निर्मित किया गया है, गांव के मध्‍य में महासू देवता का भव्‍य मन्दिर अवस्थित है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    यमुना घाटी में स्थित महासू मन्दिर गैर विशुद्ध पर्वतीय परम्‍परा में निर्मित है, इस मन्दिर की वास्‍तुयोजना उत्‍तराखण्‍ड के अन्‍य जनपदों के बहुसंख्‍यक मन्दिरों से मूलत- भिन्‍न है, इस मन्दिर के निर्माण पाषाण और काष्‍ठ का आकर्षक मिश्रण किया गया है, मन्दिर की तलछन्‍द योजना में एक आयताकार कक्ष के अन्‍दर उसके पिछले लगभग आधे भाग में गर्भगृह का प्राविधान रखा गया है, इस प्रकार आयताकार कक्ष की दीवारें गर्भगृह के पूर्व, उत्‍तर और दक्षिण में बन्‍द प्रदक्षिणापथ का निर्माण करती है और पश्चिम की ओर सभामण्‍डप का निर्माण करती है, मन्दिर की ऊर्ध्‍वछन्‍द योजना में पाषाण खण्‍डों से निर्मित प्रासादपीठ उठाकर उसके ऊपर देवदार के लम्‍बे और मोटे शहतीर रखे हैं, प्रासाद पीठ के ऊपर उठाया गया है, इसकी छत आवासीय भवनों की तरह स्‍लेटी प्रस्‍तरों से आच्‍छादित है, ढलुआ छत निर्मित है, इसके शीर्ष पर एक लम्‍बी लकडी से बकरी तथा उसके बच्‍चे का काष्‍ठाकंन किया गया है, गर्भगृह का शिखर आयताकार कक्ष की छत से ऊपर निकला हुआ है, इसका निर्माण भी लकडी और पत्‍थर से किया गया है, शिखर शीर्ष पर त्रिस्‍तरीय काष्‍ठ छत्रावली शोभित है, मन्दिर को चारों ओर से काष्‍ठ लडियों से सजाया गया है, मण्‍डप के प्रवेश द्वार पर अंकित पशु, पक्षी वानस्‍पतिक और मानव आकृतियों की सज्‍जा आकर्षक है, शैली और वास्‍तु सामग्री के अनुसार यह मन्दिर लगभग 300 वर्ष प्राचीन प्रतीत होता है।

  • महासू मन्दिर पुजेली

  • monument image

    ग्राम -पुजेली

    तहसील -बडकोट

    जनपद -उत्‍तरकाशी

    पहुंच मार्ग -

    नौगांव – राजगढी मोटर मार्ग पर यमुना के दायें तट पर पुजेली ग्राम स्थित है, गांव के मध्‍य में महासू मन्दिर अवस्थित है।

    पुरातात्विक महत्‍व -

    पुजेली का महासू मन्दिर भी काष्‍ठ एवं पाषाण खण्‍डों से निर्मित है, एक आयताकार कक्ष के पूर्वार्द्ध में गर्भगृह निर्मित है, गर्भगृह के सम्‍मुख सभा मण्‍डप तथा अर्धमण्‍डप निर्मित है, गर्भगृह का शीर्ष आकर्षण काष्‍ठ छत्रावलियों से आच्‍छादित है, मन्दिर के गर्भगृह में शिव-पार्वती, महिषमर्दिनी तथा हरिहर पितामह की पाषाण प्रतिमायें रखी हैं, ये प्रतिमायें 12-13 वीं शताब्‍दी में निर्मित प्रतीत होती हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि मध्‍यकाल में यहां पर पाषाण निर्मित अनेक मन्दिर रहें होंगे लेकिन कालान्‍तर में काष्‍ठ और प्रस्‍तर निर्माण की प्रक्रिया में यह मन्दिर निर्मित किया गया होगा।

(क) राज्य संरक्षित स्मारक / स्थल

संस्‍कृति विभाग की अधीनस्‍थ इकाई क्षेत्रीय पुरातत्‍व इकाई, पौडी एवं अल्‍मोडा द्वारा प्रदेश के 47 संरक्षित स्‍मारकों / स्‍थलों का अनुरक्षण एवं रख-रखाव कार्य सम्‍पादित किये जाते हैं। वर्तमान में क्षेत्रीय पुरातत्‍व इकाई, पौडी / अल्‍मोडा के अधीनस्‍थ निम्‍नलिखित संरक्षित स्‍मारक / स्‍थल हैं :- क्र0सं0 स्‍मारक / स्‍थल का नाम

क्र0सं0 स्माकरक / स्थषल का नाम
1 वैष्‍णव मन्दिर समूह, देवल, पौडी गढवाल
2 वैष्‍णव मन्दिर समूह, देवल, पौडी गढवाल
2 देवलगढ मन्दिर समूह, देवलगढ, पौडी गढवाल
3 शिव मन्दिर पैठाणी, पौडी गढवाल
4 शिवालय, कुखडगांव, पौडी गढवाल
5 लक्ष्‍मी नारायण मन्दिर समूह, सुमाडी, पौडी गढवाल
6 नारायण कोटि मन्दिर समूह, नारायण कोटि, रूद्रप्रयाग
7 नालाचटटी मन्दिर / स्‍तूप, रूद्रप्रयाग
8 दमयन्‍ती मन्दिर, हयूण, रूद्रप्रयाग
9 लक्ष्‍मी-नारायण मन्दिर समूह, बैरांगणा, रूद्रप्रयाग
10 वैतरणी मन्दिर समूह, गोपेश्‍वर, चमोली
11 गोविन्‍द मन्दिर समूह, सिमली, चमोली
12 कुलसारी मन्दिर, कुलसारी, चमोली
13 नारायण मन्दिर समूह, देवराडा, चमोली
14 सूर्य मन्दिर समूह, पलेठी, देवराडा, चमोली
15 राज-राजेश्‍वरी मन्दिर, रानीहाट, टिहरी गढवाल
16 नन्‍दा देवी मन्दिर समूह, बजिंगा, टिहरी गढवाल
17 क्‍यार्क-रैथल मन्दिर समूह, उत्‍तरकाशी
18 जमदग्नि मन्दिर, थान, उत्‍तरकाशी
19 महासू मन्दिर, बडकोट, उत्‍तरकाशी
20 महासू मन्दिर, पुजेली, उत्‍तरकाशी
21 देवदारा मन्दिर पौंटी, उत्‍तरकाशी
22मुण्‍डेश्‍वर महादेव मन्दिर, पिथुनी, अल्‍मोडा
23 पाताल देवी मन्दिर, शैल, अल्‍मोडा
24नौदेवल मन्दिर समूह, बानठौक, अल्‍मोडा
25त्रिनेत्रेश्‍वर महादेव मन्दिर एवं एकादश रूद्र मन्दिर समूह, बमनसुयाल, अल्‍मोडा
26सिमाण का प्राचीन शिव मन्दिर, चौसाला, अल्‍मोडा
27नन्‍दा देवी मन्दिर, अल्‍मोडा नगर, अल्‍मोडा
28लखुडियार चित्रित शैलाश्रय, दिंगोली, अल्‍मोडा
29श्री राम मन्दिर, नारायण काली, अल्‍मोडा
30कपिलेश्‍वर महादेव मन्दिर, सैंज, अल्‍मोडा
31प्राचीन समाधियाँ, जसकोट, अल्‍मोडा
32महारूद्रेश्‍वर मन्दिर समूह, बल्‍सा, अल्‍मोडा
33महादेव मन्दिर समूह, सोमेश्‍वर, अल्‍मोडा
34प्राचीन विश्रामालय, गढकोट, चम्‍पावत
35वाणासुर का किला, मोत्‍युराज, चम्‍पावत
36शिव मन्दिर, नादबोरा, चम्‍पावत
37एक हथिया नौला, ढकना, चम्‍पावत
38शिव मन्दिर (पंचायतन) चैकुनी, चम्‍पावत
39 शिव मन्दिर, खर्क-कार्की, चम्‍पावत
40 शिव मन्दिर, तल्‍ली मादली, चम्‍पावत
41 प्राचीन समाधियाँ, फुँगर, चम्‍पावत
42 चामुण्‍डा एवं शिव मन्दिर, पाताल भुवनेश्‍वर, पिथौरागढ
43 प्राचीन शिव मन्दिर, थल (धामीगाँव), पिथौरागढ
44 एक हथिया देवाल, अल्मियाँ, पिथौरागढ
45 महारूद्र लक्ष्‍मी – नारायण मन्दिर मरसोली, पिथौरागढ
46 बाघनाथ मन्दिर समूह, बागेश्‍वर
47 बद्रीनाथ मन्दिर समूह, गढसेर, बागेश्‍वर

(ख) राज्‍य संरक्षणाधीन स्‍मारक / स्‍थल

संस्‍कृति विभाग की अधीनस्‍थ इकाई क्षेत्रीय पुरातत्‍व इकाई, पौडी एवं अल्‍मोडा द्वारा प्रदेश के 24 संरक्षणाधीन स्‍मारकों / स्‍थलों का अनुरक्षण एवं रख-रखाव कार्य सम्‍पादित किये जाते है। वर्तमान में क्षेत्रीय पुरातत्‍व इकाई, पौडी / अल्‍मोडा के अधीनस्‍थ निम्‍नलिखित संरक्षणाधीन स्‍मारक / स्‍थल हैं :- क्र0सं0 स्‍मारक / स्‍थल का नाम

क्र0सं0 स्माकरक / स्थषल का नाम
1 नगर गांव के मन्दिर, पौडी गढवाल
2 दानडी मन्दिर समूह, दानडी, पौडी गढवाल
3 शिवालय, महड, रूद्रप्रयाग
4 चण्डिका मन्दिर समूह, भणज, रूद्रप्रयाग
5 कर्णधार शिवालय, रूद्रप्रयाग
6 सिल्‍ला मन्दिर समूह, रूद्रप्रयाग
7 बसुकेदार मन्दिर समूह, रूद्रप्रयाग
8 कण्‍डारा मन्दिर समूह, कण्‍डारा, रूद्रप्रयाग
9 फलसी मन्दिर समूह, फलसी, रूद्रप्रयाग
10 तपोवन मन्दिर समूह, तपोवन, चमोली
11 अनुसुया मन्दिर समूह, चमोली
12 प्राचीन शिला लेख कसारदेवी (माट), अल्‍मोडा
13 बौणसी देवालय, खासतिलाडा, अल्‍मोडा
14 ऊँटेश्‍वर मन्दिर समूह एवं आदित्‍य मन्दिर कनरा, अल्‍मोडा
15 पावनेश्‍वर महादेव मन्दिर पुभाऊँ, अल्‍मोडा
16 मणकेश्‍वर महादेव मन्दिर पारकोट, अल्‍मोडा
17 बद्रीनाथ मन्दिर, छतगुला, अल्‍मोडा
18 चूडाकर्ण महादेव मन्दिर समूह, कोटिडा, अल्‍मोडा
19 ल्‍वेथाप चित्रित शैलाश्रय, बाराकोट, अल्‍मोडा
20 प्राचीन नौला, पाटन, चम्‍पावत
21 शिव मन्दिर एवं अभिलेखयुक्‍त नौला, मजपीपल, चम्‍पावत
22 सूर्य मन्दिर एवं देवी मन्दिर, मण, चम्‍पावत
23 महादेव मन्दिर एवं प्राचीन नौला मनटाण्‍डे, चम्‍पावत
24 विष्‍णु मन्दिर, कोटली, पिथौरागढ

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